गूगल के सर्वर में करोड़ों यूजर्स के डेटा का विशाल भंडार होता है। इसमें से यह सर्च इंजन यूजर लोकेशन, ब्राउजिंग हैबिट्स और सर्च हिस्ट्री का यूज करते हुए अपने कुछ सर्च रिजल्ट्स को पर्सनलाइज्ड करता है, लेकिन कई यूजर्स के एक जैसे सर्च टर्म्स के बावजूद उनके रिजल्ट्स बिल्कुल मेल नहीं खाते, यानी वे सीक्रेट ही रहते हैं।
यह निष्कर्ष हाल ही में डकडकगो की ओर से किए गए अध्ययन के बाद निकला है। इस अध्ययन का विषय था- 'मेजरिंग द फिल्टर बबल- हाउ गूगल इज इन्फ्लूएंसिंग व्हाट यू क्लिक'। यानी आप जो कुछ क्लिक करते हैं, गूगल उसे कैसे प्रभावित करता है?
अध्ययन में दावा किया गया कि यह 'फिल्टर बबल' प्रत्येक इंडिविजुअल यूजर के लिए सक्रिय रहता है, चाहे वह गूगल की इनकॉग्निटो विंडो यानी प्राइवेट ब्राउजिंग यूज करता हो या जब गूगल अकाउंट से लॉग आउट हो।
गौरतलब है कि 6 साल पहले प्रसिद्ध अखबार वाल स्ट्रीट जर्नल ने अपने स्वतंत्र अध्ययन में दावा किया था गूगल सर्च रिजल्ट्स ने 2012 के राष्ट्रपति चुनाव को काफी प्रभावित किया।
इसी आरोप के मद्देनजर डकडकगो ने 2018 के मध्यावधि चुनाव से पहले जून में कैंडिडेट्स के चुनाव प्रचार के दौरान चली भारी राजनीतिक सरगर्मी के बीच 87 पार्टिसिपेंट्स को लेकर यह अध्ययन किया था, ताकि इस बात की पुष्टि हो सके कि व्यक्तिगत (पर्सनलाइज्ड) सर्च रिजल्ट्स ने 'फिल्टर बबल' के प्रभावों पर अंकुश लगाकर मतदाताओं की पसंद-नापंसद पर असर डाला या नहीं।
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