_मेहनत से उठा हूँ, मेहनत का दर्द जानता हूँ,_
_आसमाँ से ज्यादा जमीं की कद्र जानता हूँ।_
_लचीला पेड़ था जो झेल गया आँधियाँ,_
_मैं मगरूर दरख्तों का हश्र जानता हूँ।_
_छोटे से बड़ा बनना आसाँ नहीं होता,_
_जिन्दगी में कितना जरुरी है सब्र, जानता हूँ।_
_मेहनत बढ़ी तो किस्मत भी बढ़ चली,_
_छालों में छिपी लकीरों का असर जानता हूँ।_
_कुछ पाया पर अपना कुछ नहीं माना,_
_क्योंकि आखिरी ठिकाना मेरा मिटटी का घर जानता हूँ।
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